भूकम्प के कारण और परिणामों की विवेचना करें

भूकम्प के कारण और परिणामों की विवेचना करें

भूकम्प के कारण और परिणामों की विवेचना करें
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भूकम्प प्रायः पृथ्वी के कमजोर एवं अव्यस्थित भूपटल के सहारे अधिक आते हैं। भूकम्प के कारण भूमिगत चलन और अपूर्णता की स्थिति पैदा हो सकती हैं। ये कारण भूकम्प के परिणाम स्थायी या अस्थायी हो सकते हैं, और इसका प्रभाव समुद्री तटों, जल आपूर्ति, भूमि बदलाव, और जीवन की सुरक्षा में भी हो सकता है। इसके अलावा, भूकंप से संबंधित कई अन्य खतरे भी हो सकते हैं, जैसे भूमिगत भूस्खलन, भूमि के खदानों का बिगड़ना, और बड़े हानिकारक घटनाओं का खतरा | विभिन्न भूकम्प क्षेत्रों के अध्ययन तथा भूकम्प विज्ञान के साक्ष्यों के आधार पर भूकम्प आने के निम्न कारण बताए जा सकते है:

प्लेट विवर्तनिकी :-

विवर्तनिकी क्रियाएं ही भूकम्पों का मुख्य कारण है। प्लेट विवर्तनिक सिद्धांत के अनुसार स्थलमण्डल अनेक कठोर व दृढ़ प्लेटों से निर्मित है। जिन्हें प्लेट कहा जाता है, और ये प्लेटें धीरे-धीरे चलती रहती हैं। जब ये प्लेटें एक दूसरे के साथ संघटित होती हैं, तो उस प्रक्रिया को प्लेट विवर्तन कहा जाता है।
जब प्लेटें एक दूसरे के साथ संघटित होती हैं या अलग होती हैं, तो उसमें तब्दीलियां होती हैं जो भूकम्प के कारण बनती हैं। इसमें भूकम्प, भूस्खलन, और धरातल के अलग-अलग हिस्सों में ज़मीन के चलन की संभावना होती है। इस प्रकार के भूकम्प सामान्य तौर पर उस इलाके में चलन की स्थिति के अनुसार भयंकर नुकसान और नुकसान का खतरा पैदा कर सकते हैं। भारत में लातूर व उस्मानाबाद तथा भुज में आए भूकम्प विवर्तनिक घटनाओं का परिणाम थे। भुज का भयंकर भूकम्प भूपृष्ठ से 15 किमी० से भी कम गहराई पर भारतीय प्लेट तथा यूरेशिया प्लेट के टकराने के कारण आया था।

ज्वालामुखी क्रिया :-

अधिकांश भूकम्प ज्वालामुखी पेटियों में आते हैं। ज्वालामुखी क्रिया एवं भूकम्प का आपस में गहरा सम्बन्ध है। ज्वालामुखी उद्गार के साथ प्रायः भूकम्प अवश्य आते है। ज्वालामुखी क्रिया के दौरान जब उच्च दाब वाली जलवाष्प एवं गैसे भूगर्भ से बाहर आने का प्रयास करती हैं तो धरातल पर कम्पन होता है। ऐसे क्षेत्रों में ज्वालामुखी क्रिया के साथ अथवा ज्वालामुखी उद्‌गार के बिना भी भूकम्प आते रहते है। एटना, विसूवियस आदि ज्वालामुखी विस्फोटों के समय विनाशकारी भूकम्प आए थे।

जलवाष्प एवं गैसों की क्रियाशीलता :-

जब दरारों या अन्य किसी कारण से सतही जल पृथ्वी की गहराईयों तक चला जाता हैं, तो वह अत्यधिक तापमान के कारण जलवाष्प एवं गैसों में बदल जाता है। ऐसी उच्चदाब वाली दबाव वाष्प मिश्रित गैसें पृथ्वी की सतह की ओर आने का मार्ग ढूढ़ती है। फलस्वरूप भूपटल के नीचे धक्के लगने लगते हैं तथा भूतल पर भूकम्प आते है।

रीड का 'चट्टानों का लचीलापन सिद्धांत' :-

रीड का ‘चट्टानों का लचीलापन सिद्धांत’ भूकम्पों और भूमिकंपीय प्रक्रियाओं को समझने में मदद करने के लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है। इस सिद्धांत का विकास जिम्मी रीड द्वारा किया गया था, जो एक अमेरिकी भूमिकम्प अनुसंधानकर्ता थे।
इस सिद्धांत के अनुसार, भूमिकम्प से एक चट्टान को दी गई दबाव के परिणामस्वरूप वह अपनी संरचना में बदलाव कर सकती है, जिससे भूमिकम्पीय गतिशीलता को समझने में मदद मिलती है। यह सिद्धांत भूमिकम्प अनुसंधान और भूमिकम्पीय जोखिम का अध्ययन करने में उपयोगी है।

जलीय भार :-

कभी-कभी किसी विषम धरातलीय प्रदेश में जहां कभी भंश एवं तेज सम्पीडन क्रिया का प्रभाव रहा हो, वहां यदि विशाल बांध का निर्माण किया जाए तो ऐसे क्षेत्र में स्थानीय जलीय भार की दशा में भूकम्प भी आ सकता है। प्राकृतिक झीलें या तालाब सहज प्राकृतिक क्रिया से बनते है। अतः वहां ऐसे भूकम्प नहीं आते। बांध निर्माण के समय के भयंकर विस्फोट, पूर्ववर्ती भ्रंश के किनारों से जल का भू-गर्भ में प्रवेश एवं भारी मात्रा में एकत्रित जल का भार सभी कियाएं एक साथ मिलकर वहां भूकम्प की स्थिति पैदा कर देती है। ऐसी क्रिया से भूकम्प आता ही हैं, इस पर विद्वानों में मतभेद हैं। भारत में कोयना का भूकम्प, संयुक्त राज्य में कोलेरेडो नदी पर बने मीड बांध तथा झील क्षेत्र का भूकम्प एवं नील पर आस्वान बांध बनाने के पश्चात् नदी घाटी में आया भूकम्प ऐसा ही सोचने को बाध्य करते हैं। कोयना एवं आस्वान बांध के क्षेत्र पृथ्वी के प्राचीन एवं स्थिर स्थलखण्ड हैं, जहां कि इसके पूर्व हजारों वर्षों में भी भूकम्प के प्रमाण नहीं मिलते है।

भूपटल का संकुचन :-

अनेक विद्वानों के अनुसार विकिरण के कारण पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे घट रहा है। प्रारम्भ में पृथ्वी आग के गोले के समान थी। यद्यपि भूपटल शीतल हो गया है, किन्तु आन्तरिक भाग अब भी तप्त अवस्था में है। निरतंर ताप में हास के कारण उसकी ऊपरी परत संकुचित हो रही है। सिकुड़नें से शैलों में भिंचाव उत्पन्न होता हैं। तीव्रता से संकुचन होने पर भूकम्प आते है। आधुनिक विद्वानों ने भूगर्भ के संकुचन पर आपत्ति करते हुए बताया कि रेडियों सक्रिय पदार्थों के विखण्डन के कारण भूगर्भ में निरन्तर ताप की वृद्धि होती रहती है।

अन्य कारण :-

उपर्युक्त कारणों के अलावा भूस्खलन, हिमधाव (avalanche), समुद्रतटीय भागों में भृगुओं के टूटने, कंदराओं की छतों के ढहने आदि से भी लघु प्रभाव वाले भूकम्प आते है। प्राकृतिक कारणों के अलावा आणविक विस्फोट, खनन क्षेत्रों में विस्फोटकों के प्रयोग व गहरे छिद्रण आदि। मानवीय कारकों से भ स्थानीय प्रभाव वाले भूकम्प उत्पन्न होते है।

भूकम्पों के प्रभाव (Effects of Earthquakes):- भूकम्प सबसे विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है जिसके आगे आज भी मानव एवं विज्ञान पूरी तरह असहाय है। जहां ज्वालमुखी का प्रभाव सिर्फ स्थान विशेष के आस-पास ही रहता हैं, वहीं भूकम्प की तरंगो का घातक प्रभाव कुछ सौ वर्ग किमी लाखों वर्ग किमी० तक अंकित किया गया है। इनसे होने वाले घातक प्रभाव निम्न है

(1) सांस्कृतिक भू-दृश्यों का नाश :- भूकम्प आते ही मकान गिर जाते है, सड़क व रेलमार्ग टूट जाते है तथा बांध फूट जाते है। नगर व गांव पूरी तरह नष्ट हो जाते है। भुज में वर्ष 2001 में आए भूकम्प से भुज, अंजार तथा भचाऊ पूर्णतः नष्ट हो गए थे।

(ii) जनहानि :-अधिक तीव्रता वाले भूकम्प यदि सघन ओबादी वाले क्षेत्रों में आए तो व्यापक जनहानि होती है। मलबे के नीचे दबने, अग्निकाण्ड होने व बाढ आने से लाखों लोग शीघ कालकलवित हो जाते है। इसमें अनेक जीव-जन्तु भी मारे जाते हैं। महासागरीय तली या तटीय भागों में भूकम्प आने पर उठने वाली सुनामी लहरें हजारों किमी० तक विनाशलीला करती है।

(iii) नदियों द्वारा मार्ग परिवर्तन :- भूकम्प के प्रभाव से जब नदी तल ऊपर उठने लगता है या मार्ग में भू-स्खलन व अन्य बाधाओं के कारण पानी का बहाव अस्थायी तौर पर रूक जाता है, तब या तो नदी मार्ग बदल लेती है अथवा वहां अस्थायी झील बन जाती है। दोनों ही दशाओं में निचले क्षेत्रों एवं नवीन क्षेत्रों में भंयकर बाढ़ें आती है।

(iv) भूतल पर दरार, धंसाव एवं उभारः– विनाशकारी भूकम्पों से धरती पर दरारें पड़ जाती हैं। इन दरारों में गांव, भवन, सड़के आदि समा जाते हैं। धरातल पर ऐसे अभूतपूर्व परिवर्तन से सम्पूर्ण प्रदेश के संसाधनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

भुकम्प के लाभकारी प्रभाव :-

भूकम्पों से अप्रत्यक्ष रूप से कभी- कभी कुछ लाभ हो सकते है। इससे पड़ी दरारों एवं भंश से भूमिगत जल-सोतेसतह पर आ सकते हैं। भू-गर्भ के नीचे छिपे खनिजों को निकालना आसान हो सकता हैं। तटीय भाग का सागर गहरा होने पर वहां प्राकृतिक बन्दरगाह बन सकते हैं। कई बार बंजर प्रदेश भूमि में धंस जाते हैं और वहां उपजाऊ मिट्टी निकल आती है।

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